समंदर में भी शहरी करण बढ़ रहा हैं

पानी के जार में रह रही मछली को देख मुझे ऐसा लगता हैं जैसे हम शहरो में दो रूम या तीन रूम के फ्लैट में रह रहे हो। कहा जाता है मछली जल की रानी है जीवन उस का पानी है वैसे जो मछलियाँ आज कल शीशे  के जार में रखी जाती है वो मछलियाँ समंदर की होती है समंदर में मछलियाँ झुंडो में रहती है और जितनी मर्जी उतनी दूर तक घूम सकती है। जैसे हम गाँव में बड़े बड़े मकान और खुला आसमान और खेत देखते हैं। जैसे जैसे  शहरी कारन बढ़ रहा है वैसे वैसे माकन अब फ्लैट में तब्दील होते जा रहे हैं वैसे ही मुझे लगता है समंदर में भी सहरी करण बढ़ रहा हैं और मछलियाँ अब शीशे की जार तक पहुच गई है मुझे इन मछलियों से बहुत लगाओ है इन की लाइफ और मेरी लाइफ बिलकुल मिलती जुलती है जब अपने घर पे रहता था तो बहुत सरे दोस्त थे रिश्तेदार थे, मै हमेशा हर किसी के यहाँ घूमता रहता था पर जब सहर में आ गया तो सब कुछ सिमट सा गया है दोस्त भी अब गिने चुने रह गए है, रिश्तेदारों की बात तो छोड़ ही दीजिये वैसी ही इन मछलियों का हाल है जार में ये भी सिमट क रहती है अपनी दुनिया बना कर, सब कुछ बनावटी सा इनके जार में भी होता है बनावटी लहरे बनावटी पत्थर और बनावटी हवा वैसे ही जैसे हमारे फ्लैट में, हवा चाहिए ऐसी लगा दो, खेत, फूल बगीचे चाहिए तो छत पे दो चार गमले में फूल लगा दो और सोचो हम गाँव में हैं।


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