" इ पेड़ चन्दन का तो नहीं है ?


मै  हरिद्वार के रास्ते ऋषिकेश जा रहा था रास्ते में बहुत जाम लगा था. हम जाम खुलने का इंतजार करने लगे. रास्ते के किनारे एक पेड़ गिरा पड़ा था. मै  उसी पे जा के बैठ गया मेरे पास मेरा कैमरा भी था और मै इधर उधर की तस्वीरे लेने लगा. तब मैंने देखा एक महिला उस पेड़ को घुर के देख रही है जिसपे मै बैठा था वो पेड़ बेचारा सुखा सा था. उस महिला ने अपने पति को आवाज़ लगाई " ये जी सुनिए गा ... उस का पति आ गया. महिला ने कहा " इ पेड़ चन्दन का तो नहीं है ? और मै चुप चाप उन दोनों की बातें सुन रहा था।
पति कहता है "लग तो रहा है रुको तोड़ के देख रहें है. पति गया और एक बड़ा सा पत्थर का टुकड़ा ले आया और लगा तोड़ने. उसे तोड़ता देख  कुछ और लोग भी आ गये और और पेड़ से लकड़ी तोडना शुरू किया. देखते देखते पूरी बस के लोग नीचे आ गए और लकड़ी तोड़ तोड़ के बस में रखना शुरू कर दिया उसी बस में एक फिरंग था जो जापान से आया हुआ था वो बेचारा भी इन के झासे में आ गया और लकड़ी तोड़ के अपने बैग में रखना शुरू कर दिया.असल में  वो चन्दन की नहीं वो चीर का पेड़ था जीसकी सुगंध कुछ कुछ धुप (जो हम हवन में जलाते है ) से मिलती जुलती थी. जाम खुला और हम रास्ते भर हस्ते हुए और उन लोगो के बारे में बात कर रहे थे जो बिना सोचे समझे सिर्फ एक दुसरे को देख के लकड़ी तोड़ने आगये और उस जापानी को भी हिन्दुस्तानी बना दिया ....

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