दूसरा आकाश आया है

हर एक दिन आपका ही हैं चाहे वो दिन जो मैं जी रहा हूँ पर वो सारा दिन सारा पल आपका ही हैं। मैं काफी समय से अपने घर से दूर हूँ और शुरू से ही मुझे अकेले रहने की आदत हैं काफी कम दोस्त और जो दोस्त उनके लिए जान हाज़िर और जब मुझे दिल्ली आना था उस समय मै अठारह या उन्नीस साल का था मैंने जब अपनी मम्मी से बोला मैं जा रहा हूँ दिल्ली तब उन्होंने कहा था जाओ, पापा थोड़े नाराज़ थे मेरे दिल्ली आने से पर मम्मी ने कहा था जाओ और पहुंच के फ़ोन करना। उस समय मेरे पास फ़ोन नहीं था और हर दिन मैं पीसीओ से उनको फ़ोन करता था मुझे उनकी आवाज़ चाहिए थी जो शयद मुझे मजबूत करती थी। पहले हर दिन फ़ोन करता था फिर कुछ दिन बाद करने लगा फिर हफ्ता हुआ फिर महीने में तीन या चार बार बात होती थी। मैं पढता भी था उस समय और जॉब भी करता था तब काफी समय इन्ही सब में बीत जाता था पर मम्मी हमेशा फ़ोन उठाते पूछती थी खाना खाया ? तबीयत ठीक हैं ? अपना ध्यान रखना और मैं चुप चाप सिर्फ सुनता था घर आने पे मैं कभी कभी रोता भी था की मुझे यहाँ नहीं रहना हैं मुझे घर जाना हैं पर मैं उलझता गया इस सहर में और इतना उलझ गया की तेरह साल हो गए और साल में एक या दो बार जा पाता हूँ वो भी कुछ दिन के लिए और फिर वापस दिल्ली अपने उलझनों सुलझने के लिए पर मम्मी आज भी फ़ोन करती हैं तो वही सवाल होते हैं खाना खाया ? तबियत ठीक हैं ? अपना ध्यान रखना और आज भी मैं उनसे बात नहीं कर पाता हूँ मैं हर दिन वापस अपने घर जाने का सोचता हूँ और जब भी किसी नए लड़के को देखता हूँ अपना घर छोड़ कही दूर आये तो सोचता हूँ दूसरा आकाश आया है। शयद मैं गलत सोचता हूँ पर मैं यही सोचता हूँ।

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