समय आगे बढ़ रहा हैं।

याद हैं मुझे जब रविवार को महाभारत आया करता था छत पे जा के हम एंटीना सही करते थे ताकि साफ तस्वीर दिखे और आस पास के बच्चे पंडित जी रंजीत चाचा और पुरे घर वाले टीवी बाहर वाले दालान में रख के रंगोली महाभारत शक्तिमान तक देख लेते थे। उस टाइम किसी के पास मोबाइल और फेसबुक नहीं हुआ करता था वो माहौल बड़ा सही लगता था ऐसा लगता था जैसे पूरा मोहल्ला अपना परिवार हैं सब खाते पीते खेलते मस्त रहते थे जब लाइट जाती थी तो जनरेटर या बैटरी से टीवी चलते थे कोई दो तीन दिन नहीं दिखा तो हम दूसरे से या उस के घर जा के देखते या पूछते थे। जैसे जैसे टाइम आगे बढ़ता गया हम लोग बहार निकलते और मोबाइल फ़ोन, इंटरनेट, टीवी पे आने वाले  पांच सॉ तरह के सास बहु टाइप सीरियल आने लगे तो सब बदलने लगा सभी अपने में बिजी होने लगे। अब वही समय रूप बदल कर फेसबुक, व्हाट्सप्प, सोशल साइट्स में आया नज़र आता हैं। मानो जैसे मैं कोई फिल्म देख रहा हूँ तो फेसबुक पे लिखदूंगा " वाचिंग कुछ कुछ होता हैं " कुछ ही देर में अंकुर लिखेगा चाचा मैं भी , कुछ और दोस्त भी मी टू लिख देंगे.... पढ़ के ऐसा लगेगा मनो सब साथ देख रहे हो एक ही घर में। इंडिया के किसी कोने से या छपरा से कोई दोस्त लिखेगा " कैसे हो आकाश यहाँ तो यार बहुत गर्मी हैं " फिर उस से बातें शुरू हो जाएंगी मनो मैं छपरा में हूँ और गर्मी मुझे भी लग रही हैं। किसी और दोस्त का कॉल आये गा तो काट के हम उस को मैसज करेंगे " खाना खा के बात करता हूँ " मनो जैसे घर में मैं खाना खा रहा हूँ और फहीम आया हैं दालान में बैठा इंतज़ार कर रहा हैं और मैंने अंदर से आवाज़ दी की बैठो मैं खाना खा के आता हूँ या खाना हैं तो आ जाओ। सब कुछ वैसा ही हैं बस सिस्टम बदल गया हैं कॉमिक्स और वीडियो गेम खेलने के लिए हम लाइब्रेरी या न्यू किंग जाया करते थे अब हमारे स्मार्ट फ़ोन और ऑनलाइन पे सब उपलब्ध हैं।  वैसे ही जैसे पहले हम जिससे मन मिले उस से बात करते थे जिससे न मिले उस से नहीं करते अब फेसबुक पे भी वैसा ही हैं जिससे आप के विचार मिले उसे ऐड करो बातें करो जिससे न मिले उससे मत जूड़ो।  सबकुछ लगभग वैसा ही है बस समय आगे बढ़ रहा हैं।  

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