जीतेन्द्र शर्मा मेरा दोस्त हैं हम साथ ऑफिस में काम करते हैं वो फुटबॉल का खिलाडी भी हैं और बाइक भी चलानी उसे काफी पसंद हैं।  मुझे बाइक चलानी नहीं आती लेकिन बाइक पे घूमना पसंद हैं। जीतेन्द्र अपने कुछ बाइकर दोस्त के साथ हमेशा ट्रिप पे जाया करता हैं कुछ साल पहले मै भी उस के साथ गया था उत्तराखंड, वो चलता हैं और मैं पीछे बैठा रहता हूँ।  मुझे घूमने और नईं जगह देखने का बड़ा मन करता हैं बचपन में पापा ने बहुत जगह घुमाया और जब नौकरी में आया तो फैरस ऑफ़ इंडिया जो मेरी डाक्यूमेंट्री सीरीज थी उस ने पूरा इंडिया घुमा दिया। मेरे और जीतेन्द्र में काफी सारे वैचारिक मतभेद हैं हम लड़ते रहते हैं पर दोस्ती वाली लड़ाई होती हैं उस के मन में जो आता हैं बोल देता हैं पर दिल का अच्छा इंसान हैं बहुत कम दोस्त हैं मेरे जिनमे वो भी हैं।  

चले कहीं घूमने जीतू ? बोर हो गए यार ऑफिस से 
चल चलते हैं रण ऑफ़ कछ घूम के आते हैं .... हाँ चल

जीतेन्द्र का एक दोस्त पंकज भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गया और हम सोमवार को दिल्ली से निकल गए।  हर दिन बाइक तीन चार सॉ किलोमीटर चलती थी और हम हवा में उड़ते रुकते चलते रण की तरफ बढ़ रहे थे। बहुत सारे लोग पूछते हैं बाइक पे क्या मज़ा आता हैं सिर्फ चलाते रहते हो उस में क्या हैं। पर मैंने महसूस किया हैं ऐसा लगता हो मनो दुनिया अपनी हो हम जहा तक देख सकते हैं सब अपना हो हम जो चाहे कर सकते हैं हम चिल्ला सकते हैं चुप हो के बैठ सकते हैं खुद को धुंध सकते हैं हम सोच सकते हैं जीवन में हमने क्या सही और क्या गलत किया हम अपने अंदर झांक सकते हैं और भी बहुत कुछ,  हमे रास्ते में बहुत सारे ऐसे लोग मिलते हैं जो हमे नहीं जानते और न ही उनसे हमारा कोई लेना देना होता हैं कितने तो ऐसे जिनकी भाषा भी समझ नहीं आती पर हाईवे पे सब अपने लगते हैं। 


डाक्यूमेंट्री शूट के सिलसिले में मैं कछ पहले भी आया था वहां मेरी दोस्ती वीरा से हुई थी वीरा लकड़ी का काम करता हैं और उसे कई अवार्ड भी मिल चुके हैं उस ने कहा था जब भी कभी आना मेरे यहाँ रुकना।  हम वीरा के यहाँ रुके थे और दिन में हम घूमने जाया करते थे।  वाइट रण देखा हमने और हमारे जैसे सैकड़ो लोग और बच्चे देखने आये थे, वहाँ आस पास के गाओं वाले हस्ते हैं की लोग क्या देखने आते हैं यहाँ पे।  दो दिन रहने के बाद हम वापस दिल्ली के लिए आने लगे रास्ते में हम चित्तोर गए घूमने और रात हम वही एक धर्मशाला में रुके।  मैंने वहां से एक चांदी का कड़ा ख़रीदा अपने लिए और पंकज ने माँ के लिए राजस्थानी चुन्नी।  कड़ा ढूंढने के समय हम एक एम्पोरियम में गए जहा कड़ा तो मिला नहीं लेकिन साड़ी काफी अच्छी थी जीतेन्द्र को हमने कहा साड़ी देख लो पसंद हो तो भाभी के लिए एक ले लो, जीतेन्द्र ने कहा भाभी के लिए सिर्फ नहीं लूंगा, लूंगा तो माँ बहन और छोटे वाइफ के लिए भी लूंगा हम सब एक साथ रहते हैं सिर्फ वाइफ के लिए क्यों ले जाऊं। जीतेन्द्र की यही बात उस पुरे ट्रिप में मुझे बहुत अच्छी लगी, बाकि समय तो हम लड़ते ही रहे (सीरियस वाला नहीं) .हम तीन हज़ार किलोमीटर घूम चुके थे हम सब अपने अपने घर गए और अगले दिन ऑफिस शुरू।   

 

 

 




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