छोटे शहर की माँ और बड़े शहर का बच्चा छोटे शहर का घर बड़े शहर का मकान।

मेरे बगल वाले फ्लैट में दो कमरे के फ्लैट में एक परिवार रहता हैं पहले पति पत्नी थे फिर एक बच्चा और कुछ दिन बाद एक बूढी माँ आई, अब माँ पत्नी की थी या पति की ये नहीं पता क्योंकि मेरी बात होती नहीं है मैं बस बात सुनता हूँ क्योंकि फ्लैट के बिलकुल बगल में है तो बालकोनी से आवाज़ आती हैं, वैसे मैंने अंदाज़ा लगाया की माँ पक्का लड़के की होंगी।

रविवार, शनिवार को मैं घर में ही रहता हूँ बालकोनी में वो बूढी माँ बच्चे को ले कर बैठी होती हैं कभी तेल लगा रही होती है कभी दूध पिला रही होती हैं और कभी झुनझुना बजा के बच्चे का मनोरंजन और साथ में मेरा भी मनोरंजन कर देती हैं क्योंकि अब बगल में दरवाजा हैं तो आवाज़ आएगी ही, अब आगे सुनिये, दूध गर्म कर दिया है फ्रिज में अभी मत रखियेगा थोड़ा ठंडा हो जाएगा तब रख दीजियेगा हम लोग जल्दी आ जाएंगे और माँ बच्चे के साथ मस्ती से खेलती बात करती रहेंगी, माँ कभी बालकोनी से देखती रहेंगी सड़क पे तो कभी आते जाते लोगो को तो कभी सब्जी मंडी में सब्जी खरीदते दिख जाएंगी और कभी अकेली बालकोनी में कुछ सोचते हुए घंटो बिता देती हैं मैंने अक्सर देखा हैं उनको इसी तरह, फिर मैं सोचता हूँ अपने घर के बारे में, बड़ा घर आस पास सभी अपने मम्मी कभी अकेली रहती नहीं हैं घर में रिश्तेदार तो बगल के बच्चे और किसी न किसी का दिन भर आना जाना लगा ही रहता हैं और ऐसे माहौल में जो रहा हो उसे मेट्रो सिटी में दो कमरो के मकान में कभी मन नहीं लगेगा चाहे कुछ भी बात कह लो मन बहलाने के लिए, हमारे माँ बाप को आदत हैं उनको अपने घर में रहने की वहां रहें हैं वो जहाँ परिवार रहता हैं जहाँ आप दो दिन घर से न निकले तो पडोसी आ जाएंगे पूछने की तबीयत ठीक हैं की नहीं। वैसे ही इस माँ का घर होगा जो मेरे बालकोनी में अकेले बैठी रहती हैं शाम के इंतज़ार में और कभी कभी मैं दरवाज़ा बंद कर देता हूँ और सोचता हूँ की लोग कहते हैं माँ बाप का सहारा उनके बच्चे होते है अब ये बदल गया हैं अब ऐसा कह सकते हैं बच्चो के बच्चे का सहारा बूढ़े माँ बाप हो गए हैं। ये गलत नहीं हैं पर ये मज़बूरी हैं मज़बूरी इस लिए क्योंकि अगर पति पत्नी दोनों काम करने वाले हैं तो हमारे बच्चे को कौन संभालेगा ? या तो मेड या तो गांव में बैठी माँ जो वहां अकेली हैं बड़े से घर में और अपने बच्चो का इंतज़ार होली दिवाली में कर रही हैं, मैंने बहुत लोगो को देखा हैं ऐसे, या तो घर में मेड हैं बच्चे के लिए या माँ,सास या क्रच। एक बार ऐसे ही एक मॉल में पति पत्नी आगे आगे चल रहे थे और पीछे पीछे बचे को मेड ने गोद में ले रखा था पति पत्नी आगे एक्सीलेटर पे चढ़ गए पर मेड बेचारी डर सी रही थी एक्सीलेटर पर (स्वचालित सीढ़ी) चढ़ने में पर फिर भी वो चढ़ी बच्चा गोद में था तभी उस का संतुलन बिगड़ा और वो सीढ़ी से गिरने लगी पर उस ने बच्चे को अपने सीने से लगाए रखा था, मैं दूर था पर मेरी नज़र उस मेड पे थी, सभी भाग के गए वहां देखने की ज्यादा चोट तो नहीं लगी पर सब ने बच्चे को देखा देखना भी चाहिए क्योंकि बच्चा बहुत छोटा था पर मेड को किसी ने ये नहीं पूछा तुम्हे चोट लगी ? सब ने बस उसे सुनाना शुरू किया मैं वही था मैंने कहा बच्चे की माँ से कम से कम आप सीढ़ी पे तो गोद में ले सकती थी, पर उस ने मुझे घूरा और बच्चे को गोद में ले लिया, बच्चा उस मेड को देख कर बहुत रो रहा था और अपनी माँ की गोद से उस की गोद में जाना चाहता था ऐसा लग रहा था बच्चा असल में उसी मेड का हो वैसे लगाओ हो जाता हैं बचपन से जो संभाला हैं।
मैं जब भी ऐसी माँ को देखता हूँ फिर वही बात याद आती हैं बूढ़े माँ बाप का सहारा उनके बच्चे होते हैं। .. पर इस भागती दौड़ती दुनिया ने सही को गलत और गलत को सही के जाल में फसा रखा हैं जो हो रहा हैं वो कइयों को सही लगता हैं और कइयों को गलत सब के अपने तर्क हैं ... हमको जो लगता हैं हम लिख लेते हैं।

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